तेरे बिन ऐसे कटता है
हर दिन मेरा प्रवास में
जैसे राम बिना सीता के
आए हों बनवास में।
राम की एक अवधि थी लेकिन
अपने दिवस अनिश्चित
राम ने वन में बिताया, हमको
मिले हैं शहर अपरिचित
शाप लगा है जाने किस
नारद के उपहास में।
जितना सरल समझ बैठे थे
उतना कठिन है जीवन
बिना एक तेरे ही कितना
एकाकी है यह मन
खैर तेरी ही माँगी हमने
हर पूजा उपवास में।